Homoeopathy
बहुत प्राचीन काल से ही जब मानव आदिम अवस्था में था, सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, किसी प्रकार की कोई चिकित्सा प्रचलित नहीं थी, उसका कोई नाम नहीं था। सृष्टि के शुरुआत से से ही प्राणियों के शरीर में रोग उत्पन्न होने लगे तथा उन्हें दूर करने के लिए उपाय भी काम में लाये जाने लगे। इस प्रकार क्रमशः मानव समाज का उत्थान होता गया, शिक्षा का विकास होता गया, बुद्धि में अधिक परिपक्वता आने लगी, इसी के अनुसार चिकित्सा पद्दति भी अधिक विकसित होने लगी। इस प्रकार संसार में आयुर्वेद, यूनानी, एलोपैथी आदि का प्रचलन हुआ। इसी तरह अत्यंत विकसित, सुसंस्कृत और उन्नत मानव समाज में होम्योपैथी (Homoeopathy) का प्रचलन हुआ जो मानव समाज के लिए काफी उपयोगी साबित हो रहा है और भरपूर फायदा उठा रहे हैं।
What is Homeopathy
होम्योपैथी क्या है
होम्योपैथी (Homoeopathy) एक ऐसा चिकित्सा विज्ञान है जिसमें बीमारी का इलाज ऐसी दवाओं द्वारा किया जाता है जिनका परीक्षण पूरी तरह से स्वस्थ मनुष्यों पर किया जा चूका हो।
किसी भी स्वस्थ शरीर में किसी एक दवा का बार बार प्रयोग करने पर दवा के लक्षणों (Symptoms) से शरीर में कितने ही लक्षण प्रकट होते रहते हैं। अगर किसी बीमारी में वे सब लक्षण (Symptoms) प्रकट हों तो उस रोग में उसी दवा की सूक्ष्म मात्रा प्रयोग कर के जो चिकित्सा की जाती है उसे ही होम्योपैथी (homeopathy) कहा जाता है। आम भाषा में जहर ही जहर की दवा है और लोहा ही लोहे को काटता है के नाम से भी जानते हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई स्वस्थ आदमी भाँग खा लेता है तो उसे दिमागी भ्रम हो जाता है एक मिनट एक घंटे के बराबर लगने लगता है, पास की चीजें दूर नजर आने लगती है, हँसना शुरू करता है तो लगातार हँसता ही जाता है, बोलने लगता है तो लगातार बोलते ही जाता है, अपने आपको राजा महाराजा समझने लगता है, पेशाब में जलन और थोड़ा थोड़ा कर होने लगती है, सिर दर्द होने लगता है, होम्योपैथी के सिद्धांत के अनुसार अगर किसी रोग में ये लक्षण पाए जाते हैं तो भाँग से बनी दवा कैनाबिस इंडिका ये सब लक्षणों को खतम कर देगी।
इस प्रकार होम्योपैथी में लक्षणों (Symptoms) के आधार पर रोग का ईलाज किया जाता है, सिर्फ रोग के नाम का कोई महत्व और मतलब नहीं है। दवाओं का लक्षण जानने के लिए स्वस्थ व्यक्ति पर परिक्षण किया जाता है जिसे औषधि परीक्षण (Drug proving) कहते हैं। किसी भी बीमारी का इलाज करने के लिए कोई ऐसी दवा जिसके लक्षण उस बीमारी के लक्षणों के जैसी लक्षणों वाली हो, दी जानी चाहिए।
होम्योपैथी (Homoeopathy) का प्रारम्भ जर्मनी के एक प्रसिद्ध डॉक्टर हैनीमैन ने किया था। इस चिकित्सा पद्दति के जन्मदाता हैनिमैन हैं। इनका जन्म 1755 में जर्मन साम्राज्य के एक देश के माइसन नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे एक ऊंचे पद पर एलोपैथिक डॉक्टर थे, बहुत से मुख्य अस्पतालों में रहकर उन्होंने अनेक रोगियों का इलाज किया। इस काम में रहते हुए एक समय उन्हें एक विचार आया की अनुमान से रोगों का ईलाज बहुत हानिकारक है, क्योंकि अनुमान पर निर्भर रहकर दवा देने से केवल स्वास्थ्य हानि नहीं बल्कि बहुत से रोगियों की मृत्यु तक हो जाया करती है। इसके कारण उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ। और इस कारण वे अंदाज से ईलाज करने का काम ही छोड़ दिया, लेकिन जीवन यापन के लिए कोई काम तो करना ही था। फिर उन्होंने पुस्तकों का अनुवाद कर अपना जीवन निर्वाह करने लगे। एक दिन वे एक मैटेरिया मेडिका का अनुवाद कर रहे थे, इसी क्रम में उन्हें ये पता चला की अगर सिनकोना की छाल सेवन की जाय तो कम्प ज्वर उत्पन्न हो जाता है और सिनकोना ही कम्प ज्वर (जाड़े वाली बुखार) की प्रमुख दवा है। और यहीं से उन्हें इस चिकित्सा पद्दति का अविष्कार का आधार मिला, और वे इस काम में लग गए। उन्होंने एक एक करके बहुत सारे पदार्थों आदि का खुद सेवन किया और इसके सेवन करने के बाद जो लक्षण प्रकट हुए उन लक्षणों की जाँच की। किसी रोग में वे ही लक्षण अगर दीखते तो उसी पदार्थ को देकर वे रोगी को ठीक भी करने लगे।
शुरुआत में वे अधिक मात्रा में ही दवाईओं का प्रयोग कर रहे थे, उन्हें यह बात भी मालूम हुई की रोग ठीक हो जाने पर भी कुछ समय बीत जाने पर रोगी में फिर से बहुत से नये लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं जैसे क्विनाइन खा लेने से बुखार तो छूट जाता है लेकिन बादमें रोगी खून की कमी, लिवर (यकृत), प्लीहा, सूजन आदि बहुत से साइड इफ़ेक्ट के परेशानियों का शिकार हो जाता है। कम मात्रा में दवा सेवन कराने से उन्हें यह पता चला की मात्रा कम रहने पर भी दवा की रोग मुक्त करने की शक्ति पहले जैसी है मौजूद रहती है तथा जो साइड इफेक्ट्स होते हैं वे पैदा नहीं होते। इस प्रकार दवा का सूक्ष्म रूप से प्रयोग करने लगे। उन सूक्ष्म दवाओं को वे किसी ऐसे पदार्थो में मिलाकर देने लगे जिसमें दवा का कोई गुण नहीं हो जैसे दूध की चीनी, अल्कोहल इत्यादि में। वही पद्दति आगे जाकर संशोधित होते गयी और आजकल होम्योपैथिक चिकित्सा पद्दति के नाम से विख्यात है।
दवाओं का प्रयोग करने की विधि
रोग की तेजी के अनुसार कभी 5-10 मिनट के अंतराल से 2, 3, 5, दिन या सप्ताह तक के अंतराल से दवा प्रयोग की आश्यकता पड़ती है।
प्रायः नयी (Acute) बीमारी में मदर टिंचर (Q), 2x, 3x, 6, 30 से 200 पोटेंसी तक दिन में 3 बार या विशेष परिस्थिति में हर आधे या 1 घंटे पर प्रयोग करना चाहिए। पुरानी बीमारी में (Chronic) 200 से 1000 या और अधिक पावर की लंबे अंतराल से प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।