tonsillitis

Tonsillitis treatment टॉन्सिलाइटिस/टॉन्सिल बढ़ना

Tonsillitis

Tonsillitis in hindi

गले के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मांस की एक गांठ होती है, जो लसिका ग्रंथि के तरह होती है, इसे टॉन्सिल (Tonsils)कहते हैं। मुंह फाड़ ने को कहकर जीभ की जड़ के पास देखने पर उपजिह्वा (uvula) दिखाई देती है। अगर देखने में ऐसा लगे कि उपजह्वा के ठीक दोनों ओर फूली हुई है लाल हुई है वहां रसदार सर्दी लगी हुई है तो मान लेना चाहिए कि उसे टॉन्सिलाइटिस (Tonsillitis) हो गया है। इसको हिंदी में तालु मूल प्रदाह या घंटी बढ़ना कहते हैं। उपजिह्वा के दोनों बगल के स्थान को टॉन्सिल कहा जाता है और उस टॉन्सिल के प्रदाह को ही अंग्रेजी में टॉन्सिलाइटिस कहा जाता है।

टॉन्सिलाइटिस के कारण 

Tonsillitis causes

यह अधिकतर सर्दी लग जाने या मौसम चेंज होने के कारण कर ही होती है। दूषित वातावरण में रहना, मौसम का अचानक गर्म से ठंडा हो जाना,  खून की अधिकता, बुखार लगना आदि कारणों से टॉन्सिल बढ़ जाया करती है,  माता-पिता को अगर यह बीमारी रहती है तो उनके बच्चों को भी यह हो सकता है।

टॉन्सिलाइटिस दो प्रकार का होता है

नया (Acute  tonsillitis)

और पुराना (chronic tonsillitis)

नए प्रकार का बीमारी का लक्षण

Acute tonsillitis symptoms

दोनों तरफ की टॉन्सिल या एक तरफ के टॉन्सिल फिर दूसरी तरफ की टॉन्सिल फुल जाती है और फूल कर बड़ा सुपारी की तरह हो जाता है, उप जिह्वा भी फूल कर लाल रंग का हो जाता है। खाना निकलने का रास्ता प्रायः बंद हो जाता है मुंह से लार गिरने लगता है, टॉन्सिल का दर्द कान तक पहुंच जाता है बुखार आता है बुखार 103 से 104 डिग्री तक हो सकता है जबड़े में काफी दर्द होता है,  मुंहफाड़ नहीं सकता है, सिर में दर्द बेचैनी, थूक निगलने में भी काफी तकलीफ मालूम पड़ना।
पाली अवस्था में अगर बीमारी बढ़ जाने पर पक कर फट सकता है। पकने के पहले तकलीफ बढ़ जाने से कंपकंपी और बुखार आता है टॉन्सिल यदि फट जाने के साथ ही साथ तकलीफ और बुखार भी घट जाता है।

पुरानी बीमारी का लक्षण

Chronic Tonsillitis symptoms

जिन लोगों को बार-बार टॉन्सिल की बीमारी हुआ करती है उनकी बीमारी पुराना रूप धारण कर लेती है, नया बीमारी प्रायः  आया 10 दिन से 12 दिन में ठीक हो जाती है और टॉन्सिल पहले की अपेक्षा कुछ बड़ा रह जाती है, लेकिन अगर बीमारी पुराना होकर बिगड़ जाए तो रोगी को सांस लेने और छोड़ने में तकलीफ होती है और सांस लेने के समय एक तरह का आवाज सुनाई पड़ता है और मुंह के भीतर देखने पर एक बड़ा सुपारी के तरह टॉन्सिल दिखाई पड़ता है।

अवस्था विशेष अनुसार इस रोग को तीन श्रेणियों में बांटा गया है

1.कैटरैल – सामान्य प्रकार का प्रदाह
2.फॉलिक्युलर – उप जिह्वा के पास पोस्ता के दाने के प्रकार के छोटे-छोटे दानों जैसी ग्रंथियां रहती है इन्हीं सब ग्रंथियों पर हमला होता है
3.पक जाने वाला – यह कठिन प्रकार की बीमारी है इसका दूसरा नाम किंसी (quinsy) है।

 

Tonsillitis treatment

Tonsillitis homeopathic treatment

होम्योपैथिक दवाइयां (homeopathic medicine for tonsillitis)

बेलाडोना 30- पीब होने के पहले, शुरुआती अवस्था में टॉन्सिल का रंग लाल फूला हुआ और बहुत अधिक दर्द अगर दाहिने तरफ ज्यादा तकलीफ हो तो या दवा ज्यादा फायदा करती है

मर्क सोल 30 या 200-अगर बेलाडोना से फायदा ना हो तो इसका प्रयोग करना चाहिए, अक्सर इसी दवा से बीमारी ठीक हो जाया करती है,  अगर इस दवा का कम पोटेंसी का बार बार प्रयोग किया जाए तो पकने की संभावना बढ़ जाती है। इसीलिए उस शक्ति का प्रयोग करके दो-चार दिन इंतजार करना चाहिए।

फेरम फॉस 6X, 12X (4 -4 गोली हर हर 2 घंटे पर )-  शुरू शुरू में ठंड लग जाने, बुखार आ जाने के समय अगर टॉन्सिल सूज जाए, गले में दर्द हो,  घबराहट हो और बहुत बेचैनी हो तो इस दवा को दें।

एपीस मेल 30, 200– अगर डंक मारने जैसा दर्द हो या सुई चुभने जैसा दर्द हो।

वैराइटा कार्ब 30, 200 –   सिर्फ तरल पदार्थ को निगल सकता है जबकि ठोस पदार्थ को नहीं निकल सकता है

इग्नेशिया 30,200 –  केवल ठोस पदार्थ को निकल सकता है लेकिन तरल पदार्थ को नहीं

फाइटोलाक्का 6, 30, 200 – नई और पुरानी दोनों तरह की बीमारियों में ही लाभदायक औषधि है।  ग्लैंड पर इस औषधि का विशेष प्रभाव होता है, टॉन्सिल की ग्रंथियां सूज जाती है, लाल रंग के हो जाते हैं और गला दर्द करने लगता है और कान के पास तथा जबड़े के नीचे के ग्लैंड सूज जाते हैं। गले में टॉन्सिलों की सूजन के साथ गाड़ा लसदार श्लेष्मा इकट्ठा हो जाता है। रोगी गर्म पानी नहीं पी सकता, टॉन्सिल में छोटे-छोटे छेद जैसे हो जाते हैं जैसे स्पंज में होते हैं। रोगी को फाइटोलक्का Q या लोशन से गरारा भी करना चाहिए यह लोशन 15 बून्द मूल अर्क (Q) को प्याले भर पानी में डालकर बनाया जा सकता है।

मर्क आयोड 6, 30, 200- दायीं ओर सूजन, दर्द , गर्दन की गांठें फुल जाना, गले के भीतर बहुत लसदार गोंड जैसा श्लेष्मा या एक तरह का पदार्थ जैम जाना, कोई चीज घोंटनेमें बहुत तकलीफ होना साथ में बुखार भी रहती है।

मर्क बिन आयोड 6, 30, 200- अगर बीमारी का असर बायीं ओर अधिक हो।

लैकेसिस 30, 200 – पहले बाई तरफ का टॉन्सिल फुल जाता है इसके बाद दाएं तरफ बीमारी का हमला होता है ऐसा मालूम होता है जैसे गले के भीतर गोली की तरह का कोई एक पदार्थ अटका हुआ है घूट लेने पर भी वह नहीं हटता कड़ी चीजें निगल सकता है लेकिन पतली तरल चीजें नहीं निगल सकता। गले की नली बंद हो जाने की जैसा हो जाता है और दर्द इतना अधिक होता है कि स्पर्श भी सहन नहीं हो पाता। जब टॉन्सिल पकता है तब रोगी अगर कुछ खाता है तो नाक मुंह से निकल जाता है।

हिपर सल्फर –  पीब हो जाने की स्थिति में अथवा पक जाने पर इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। अगर पीब होने वाला हो तो इसका निम्न शक्ति (6, 30) का प्रयोग करने से जल्दी से पक कर फट जाता है। इसका उच्च शक्ति (200,1M) का प्रयोग करने से प्रायः ग्रंथि बैठ जाती है। अगर बीमारी पुराना हो जाए इसका उच्च शक्ति (200,1M )का प्रयोग बीच-बीच में करते रहने से बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाया करती है।

बैराइटा म्यूर 30, 200 जिन लोगों को बार बार टॉन्सिल फुल जाती है, पक जाया करती है और पीब हो जाया करती है,  कोई चीज खाते पीते ही अन्ननली का मुंह संकुचित होने लगता है जिस से निगलने के समय दर्द  होता है और ऐसा मालूम होता है जैसे गले के नली में कुछ अड़ा हुआ है. कन्धा, कान के पास , निचले जबड़े की गांठें फूलकर कड़ी हो जाती है और साथ में जांघों में गिल्टी आदि हो जाना।

 

घरेलू उपचार- Tonsillitis home remedy

  • लहसुन की एक गांठ कुचलकर पानी में गर्म करके उस पानी को छानकर उससे गरारा करें
  • गर्म पानी में थोडा सा फिटकिरीऔर उतने ही मात्रा में नमक घोलकर गरारा करें
  • एक चम्मच अजवाइन को एक गिलास पानी में डालकर उबालें, फिर पानी को हल्का ठंडा करके उससे कुल्ली तथा गरारा करें
  • रात को सोते समय दो चुटकीपिसी हुई हल्दी, आधी चुटकी पिसी काली मिर्च, अदरक का ताजा रस एक चम्मच , सबको मिलाकर आग पर गर्म करके  और शहद मिलाकर पी जाएं। यह दवा 2 दिन में ही टॉन्सिल की सूजन को दूर कर देती है।
  • गर्म पानी में ग्लिसिरिन मिलाकर कुल्ला करने से भी काफी लाभ होता है
  • गर्म पानी में एक चम्मच नमक डालकर कुल्ला करने से काफी लाभ होता है।

भोजन तथा परहेज

  • गर्म पदार्थ, मिर्च, तेल, खटाई, तथा तेज पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • दूध, चपाती, साबूदाना, खिचड़ी, तोरई तथा लौकी का पानी, मुसम्मी, नींबू पानी, अन्नानास का रस, आंवले की चटनी आदि का सेवन करें।
  • मूली, टमाटर, गाजर, पालक, आदि सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसी तरह घी , तेल आद्फी का प्रयोग न करें। अगर बिना नमक की उबली हुई सब्जी खएंम तो टॉन्सिल जल्दी ठीक हो जाती है।
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