साइलीशिया
Silicea
शुद्ध बालू या चमकदार पत्थर से बनाया जाता है.
इसका साधारण नाम सिलीका है silica -pure Flint
यह दवा लंबे समय तक तथा धीमा क्रिया करने वाली है इसलिए इसका बार बार प्रयोग नहीं करना चाहिए।
स्नायविक रूप से कमजोर तुक मिजाजी
हड्डियों का रोग और हड्डी तथा अस्थि मज्जा अर्थात bone marrow का क्षय या क्षरण होना।
शरीर के किसी भी जगह पर पीब हो जाने पर इस दवा के प्रयोग से पीब घट कर घाव या ज़ख्म जल्दी ठीक हो जाता है।
जब किसी नयी बीमारी में पल्साटिला का प्रयोग होता है उस रोग में बीमारी पुरानी हो जाने पर साईलीशिया का प्रयोग होता है।
टिका (vaccine) लेने के बाद की परेशानी या बीमारी में यह फायदेमंद है।
तकलीफ गरम प्रयोग से घट जाती है मगर ठंडे प्रयोग से बढ़ जाती है। मृगी। शारीरिक और मानसिक साहस का अभाव।
तलहती और तलवे में पसीना, एकाएक पसीना बंद होकर बीमारी हो जाना। घाव या ज़ख्म से दुर्गन्धयुक्त पीब, जरा सा चोट भी पक जाता है।
पैरों, कान, माथे में, हाथों तथा काँखों से दुर्गन्धित पसीना। रोज शाम को पैरों पर बिना पसीने के ही असहनीय, खट्टी, सड़े हुए मुर्दे के जैसी गन्ध।
नासूर और अंगुल बेढ़ा, पुराने फोड़े, खून के फोड़े, हर तरह के घाव, आँख में आँसू के नली में नासूर हो जाना ।
बच्चे का पेट मोटा और कड़ा, पैर पतले, देर से चलना सीखता है, शरीर की तुलना में माथा या सर बड़ा रहता है।
गर्दन पर बदबूदार एकजिमा।
अधकपारी का सर दर्द जो दायां तरफ अधिक होता है, दर्द माथे के पिछले भाग से शुरू होकर धीरे धीरे ऊपर चढ़ता जाता है जो की गर्मी से या जोर से बाँधने पर घटता है।
बच्चा बड़ा जिद्दी और हर समय रोता रहता है, शांत करना मुश्किल होता है।
फोड़ा
फोड़ा में पीब बहता है जो जल्दी सूखता नहीं है, पीब पतला पानी या रस के तरह, मांस धोये पानी के तरह या खून मिला हुआ। बदबूदार पीब। फोड़े आदि ठीक हो जाने के बाद भी अगर वहां कड़ापन बना रहे बाद तक तो उसमें यह दवा से फायदा होगा। अगर किसी फोड़े में दर्द ज्यादा है तो उसे पका कर फाड़ने के लिए हिपर सल्फर 3x का बार बार प्रयोग और अगर दर्द ना हो तो साईलीशिया 3x या 6x का बार बार प्रयोग करने से फोड़ा जल्दी से पक कर फुट जाता है।
घुटने और (उरु सन्धि )femoral joint का जख्म, कार्बँकल, अंगुलबेढ़ा, किसी गांठ की सूजन या किसी जगह चोट लग कर उसके पकने पर या पकने की सम्भावना।
आँख में कोई चीज गिर जाने के कारण आँख की बीमारी हो जाना, सुई आदि का गड़ जाना तथा भगन्दर के ईलाज में इसका प्रयोग होता है।
चमड़े के नीचे कुछ धंसा रहने से यह दवा उसे बाहर निकाल दे सकती है।
अत्यधिक मानसिक थकावट, थोड़ा सा भी मानसिक परिश्रम करने से थकावट, सोच विचार भी नहीं कर सकता।
जैवी ताप का अभाव, हमेशा ठण्ड महसूस करता है, यहाँ तक की जब भारी व्यायाम करता है तब भी।
जैसे ही बच्चा स्तन पान करता है वैसे ही प्रत्येक बार योनि से रक्तस्राव होने लगता है।
कब्ज
मल कुछ बाहर आकर फिर भीतर घुस जाता है। काफी जोर लगाना पड़ता है, ऋतू स्राव के दौरान या उससे पहले कब्जियत।मलद्वार के पास घाव और मस्से।
रात को टहलना, नींद में उठ जाता है, कुछ देर चलता है और फिर लेट जाता है। नींद में बार बार चौंक जाता है, अत्यधिक जम्हाई आना।
भगन्दर – कब्ज के साथ घाव और मस्से, उससे पीब या पानी निकलता है जो पतला और बदबूदार होता है।
आँख
आँख के कोने में सूजन, अश्रुनली की सूजन। दिन के रोशनी के प्रति संवेदनशील, सूर्य की रोशनी सहन नहीं होती है, आँख के भीतर भयंकर दर्द, इससे आँखों में चका चौंध तथा तीक्ष्ण पीड़ा उत्पन्न होती है। ऑफिस में काम करने वाले को होने वाला मोतियाबिंद।
मोतियाबिंद में काफी दिन तक इस दवा का प्रयोग से अगर बीमारी ठीक ना भी हो तो बढ़ना जरूर रुक जाती है (कोनियम, कैल्केरिया फ्लोर और नैट्रम म्यूर)
कान
दुर्गन्धित पतला स्राव, कान के परदे का फट जाना या उसका क्षय। पिस्तौल के धमाके जैसा तेज शब्द सुनाई देता है। आवाज के प्रति असहज। गर्जन या सों सों का आवाज सुनाई देती है। कान बंद हो जाना जैसे मानो ताला लग गया है। अच्छी तरह नहीं सुन सकता।
टॉन्सिल का ज़ख्म
टॉन्सिल पककर पीब हो जाय तो लक्षण के अनुसार साईलीशिया देने पर फायदा करती है ( फाइटोलक्का )
पेशाब
पेशाब काफी ज्यादा होता है, पेट में कीड़े वाले बच्चे का बिछावन में पेशाब कर देने की आदत। पेशाब गन्दा, फीका, लाल या पीला तलछट जम जाता है।
अतिसार
अगर टीका लगाने के बाद अतिसार हो जाय और पतले दस्त आने लगे। मल में काफी सड़ी, बुरी गन्ध।
पुरुष के रोग
जननेन्द्रिय में जलन और दुखन। पुराना प्रमेह रोग जिससे गाढ़ा दुर्गन्धित स्राव निकलता है। रात में स्वप्नदोष होना। हाइड्रोसील में पानी भर जाना या बढ़ जाना।
हिप जॉइंट का दर्द
पहले जाँघ के ऊपर और फिर घुटने में दर्द जो की धीरे धीरे पुरे शरीर में फैल जाता है।
बाल
समय से पहले बालों का सफेद होना, पोषक तत्वों की कमी और कमजोर पाचन शक्ति के लक्षणों के साथ असमय बालों का सफ़ेद होना और कमजोर होकर गिरना (एसिड फॉस, लायकोपोडियम, नेट्रम मयूर )
नाखुन
नाखुनों में सफेद धब्बे और पैर के नाखुनों का भीतर की ओर बढ़ना। उंगलियों के नोकों में ऐसा अनुभव होना जैसे पक रहे हो। विकृत नाखुन
रोग बढ़ना– पूर्णिमा या अमावस्या के समय, ऋतु स्राव के समय, छूने पर, अन्धड़ पानी से, लेटने समय, मौसम बदलने से, ठंड से, दूध पीने से, मानसिक परिश्रम से।
रोग में कमी- गरम चीज से, गरमी से, आराम करने से माथा ढंकने से।
मर्क सोल के बाद साईलीशिया या साईलीशिया के बाद मर्क सोल का प्रयोग नहीं करना चाहिए – ये एक दूसरे के परस्पर दुश्मन दवा है।