Gout, Rheumatism, Arthritis
गठिया, वात, जोड़ों का दर्द
गठिये के आक्रमण का मुख्य कारण शरीर के जोड़ों में युरिक ऐसिड (Uric acid) का जमा हो जाना है। रोगी के मूत्र की परीक्षा (urine test) करा लेनी चाहिये । अगर मूत्र में यूरिक ऐसिड की अधिकता पायी जाय, तो उसकी तरफ़ विशेष ध्यान देकर चिकित्सा करनी चाहिये । प्रायः रोग का आक्रमण पैर के अंगूठे के जोड से शुरु होता है । यह विलासियों का, मांसाहारियों का, शराबियों का रोग है। युरोप में बहुत पाया जाता है, भारत में भी बहुत अधिक होता है । गठिया और वात दोनों अलग -अलग बीमारियाँ हैं , गठिया छोटे उम्र के व्यक्तियों में नही होती , यह प्रायः 30 वर्ष के बाद होती है | गठिया पुरुषों को अधिक होता है । जब यूरिक एसिड की मात्रा अधिक होकर खून में मिलती है और इस के वजह से युरेट ऑफ सोडा (chalk stone ) नामक पदार्थ बनता है और हाथ -पैर की छोटी जोड़ों (joints) पर इकट्ठा हो जाती हैऔर वह दर्द होना शुरू हो जाता है और सुजन हो जाता है इसे गठिया कहा जाता है । इसे अंग्रेजी में आर्थराइटिस (Arthritis) भी कहते हैं ।
कारण
- अधिक मात्रा में मांस और शराब का सेवन
- ठंडी स्थानों पर रहना
- पसीने से तर शरीर में ठंडी हवा लगना
- अधिक खाना खाना
- तेज मसाले , चाट पकौड़े , अंडे ज्यादा खाना
- बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत करनेवाले जब बाद में छोड़ देते हैं तो उन्हें भी हो जाता है
- अगर माता पिता को यह रोग रहा हो तो संतान को भी वंशानुगत होने की सम्भावना होती है
लक्षण
शुरू शुरू में पाचन क्रिया गड़बड़ाता है और जो कुछ खता है वह ठीक से पच नही पाता
पेट फूलता है , अम्ल (acidity) होता है । भूख कम लगती है ,
पेट साफ़ नही होता है । पेशाब गहरा लाल और सामान्य से कम होता है , नींद अच्छी तरह नही आती , धडकन तेज होती है । फिर अचानक किसी दिन दर्द शुरू हो जाता है । इसमें पहले पैर के अंगूठे के अगले भाग की गांठ पर रोग का आक्रमण होता है और टखने, घुटने और एड़ी पर भी हो सकता है । दर्द वाले स्थान पर इतना अधिक दर्द होता है की जरा सा छू देने और कपड़े तक के स्पर्श से रोगी चौंक जाता है । पैरों से इतना बेचैनी होती है की एक बार इधर -एक बार उधर पैर रखता है । दर्द सुबह और साम में बढ़ जाता है , रोग वाली जगह लाल होकर फूल जाती है , बुखार भी काफी तेज होकर 102 से 103 डिग्री तक हो जाता है। इस तरह परेशानी होने के बाद लगभग 5-6 दिन के बाद रोगी ठीक हो आता है , कभी कभी 2-4 सप्ताह भी लग सकते हैं । यह रोग एक बार ठीक होने के बाद बार बार हो सकती है । रोग ठीक होने के बाद उस जगह की खाल उखड जाती है। बार बार यह बीमारी होने से रोगी काफी कमजोर हो जाता है उसे उठने की भी शक्ति नही रहती , बीमारी पुरानी होने पर किडनी पर भी इसका असर हो सकता है और साथ ही सिर में चक्कर , स्नायू में दर्द आदि कई कष्ट होते हैं ।
एकोनाइट 30 , 200 –जब गठिये का शुरु-शुरु में आक्रमण हो, तब इस दवा का प्रयोग करने से लाभ हो जाता है । रोग की शुरुआत में अगर दो-तीन दिन तक इस औषधि को देते रहें, तो रोग बढ़ने नहीं पाता
बेलाडोना 30 –अगर गठिये का बैठे-बैठे एकदम आक्रमण हो जाय, दौरे (Paroxysm) पड़े, तब इस औषधि का प्रयोग करना चाहिये।
आर्टिका युरेन्स, मूल-अर्क Q 10 -10 बूंद दिन में 3 बार – यह इस रोग की मुख्य दवा है , जब पेशाब में यूरिक एसिड और यूरेट्स की मात्रा काफी बढ़ा हुआ हो
कोलचिकम 30 , 200 (प्रति 4 घंटे)–ऐलोपैथी में गठिये की यह प्रसिद्ध औषधि है, होम्योपैथी में भी इस रोग में सबसे पहले इसी की तरफ़ ध्यान जाता है। छोटे जोड़ों के दर्द में विशेष उपयोगी है। यदि रोगी का चित, हतोत्साही हो जाय, मिजाज चिड़चिड़ा हो जाय, अत्यन्त कमजोरी हो, उल्टी-सी आती हो, मांस-पेशियों और जोड़ों में तीर-सा चुमता हो, काटता-सा दर्द हो, हरकत से दर्द बढ़े, रात को भी दर्द बढ़ जाय, टांगों में, पांवों में, अंगूठों में दर्द हो, सूजन हो जाय
पल्सेटिला 30 —जब गठिये का आक्रमण शुरु की हालत में हो, दर्द एक जोड से दूसरे जोड में उडता फिरे, तब उपयोगी है । इसका विशेष स्थान घुटने हैं ।
चाइना 30 दिन में 4 बार –अगर गठिये का संबंध ऋतु-संबंधी गड़बड़ी के साथ हो । इसका दर्द हाथ से पैर के अंगूठे और पैर के अंगूठे से
हाथ में आता-जाता रहता है । साथ में कमजोरी खासकर खून बहने या उलटी दस्त होने के बाद ।
लीडम पाल 30 –अगर रोग मध्यम-प्रकृति का हो, न बहुत तेज़, न बहुत कम । रोग खासकर पैर के अंगूठे में सूजनके साथ , ठंड या बर्फ की पट्टी से रोग घटे । दर्द नीचे से ऊपर की ओर जाए ।
रस टक्स 30 , 200 दिन में 3 बार – जब रोग ठंड से बढ़े और सकने तथा चलने फिरने से आराम आए
ब्रायोनिया 30 , 200 दिन में 3 बार – जब दर्द हिलने डुलने से बढ़े , आराम करने से कम हो
काल्मिया लैट 30 , 200 दिन में 3 बार – एकाएक जगह बदलने वाला वात का दर्द , जब दर्द ऊपर से नीचे की ओर जाए , खोंचा मारने जैसा दर्द और जोड़ सुन्न हो जाए
स्टेलेरिया मेडिया 30 दिन में 3 बार – वात का तेज दर्द जो शरीर के हर जगह महसूस होता है , दर्द स्थान बदलता रहे , गांठें कड़ी हो जाती हैं , रोगी उस जगह को छूने नही देता । अँगुलियों में , कमर में , चुतड़ में , जांघ में , कंधे में , पैर में दर्द हो , liver फुला हुआ हो और उस में भी दर्द हो । किडनी के ऊपर दर्द
लाइकोपोडियम 30, 200 दिन में 3 बार – जब दर्द के साथ गैस का शिकायत हो
फौर्मिका रफा 3X , 30 दिन में 3 बार – जब पेशाब में युरेट्स और एलबुमिन की मात्रा ज्यादा हो , जोड़ो में सूजन, चलने फिरने और ठंड से रोग बढ़े , पुराना वात
काली कार्ब 200 या 1M सप्ताह में 2 बार – जब दर्द वाली जगह को ढका जाय तो दर्द बिना ढकी वाले जगह चली जाए , हर जगह तेज दर्द
जब रोग काफी पुराना हो जाए तो – कल्केरिया कार्ब , कौस्टिकम , कोलोसिन्थ
• परहेज
चना , उड़द , साग , मुंग , केला, दही, मूली , ठंडा पानी सेवन नहीं करना है , रोग की अवस्था में शारीरिक मेहनत , उपवास से परहेज करना चाहिए
मांस मछली कम से कम खाएं
भारी और नुक्सान पहुचने वाले भोजन न करें