फाईलेरिया/हाथी पांव
Filariasis
Elephantiasis
or
Filaria
फाईलेरिया बीमारी उचरेरिया बेनक्रफ्टी (Wuchereria bancrofti) नामक जीवाणु परजीवी द्वारा फैलता है, इसके लार्वा मादा क्युलेक्स मच्छरों के काटने से एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुचता है, इस बीमारी में रोगी के पैर हाथी के पैरों के जैसा हो जाता है, इसे फील पाँव या हाथी पांव या elephantiasis भी कहा जाता है। दुसरे गंभीर बिमारियों की तरह फाईलेरियेसिस भी एक गम्भीर बीमारी है और काफी कष्टदायक भी हो सकता है। यह बीमारी का प्रकोप उस जगह पर ज्यादा होता है जहाँ वातावरण गर्म होता है, तथा गंदगी, पानी के जमाव, कूड़े कचड़े का ठीक से निपटारा नहीं होता क्युकी इस बीमारी के परजीवी मच्छर क्युलेक्स इन्ही जगहों पर पनपते हैं। यह बीमारी किसी (पुरुष या महिला) को हो सकता है। इस बीमारी के मच्छर के काटने से रोगी के खून में फाईलेरिया के जीवाणु पाए जाते हैं | इसके रोगी अक्सर अपने देश के सभी जगहों पर पाए जाते हैं लेकिन उत्तरी-पूर्वी भागों में ज्यादा देखने को मिलते हैं। फाईलेरिया के जीवाणु किसी मनुष्य के शरीर में बिना कोई लक्षण प्रकट किये हुए कई महीनो तक रह सकते हैं। ठण्ड, ठंडे पानी से स्नान करने से या वर्षा में भीग जाने से भी फाइलेरिया हो सकती है।
लक्षण- Filariasis /Filaria Symptoms in Hindi
- फाइलेरिया के आक्रमण होते ही संक्रमित स्थान मोटा होने लगता है, खुजलाहट होती है और लालिमा लिए रहता है।
- शुरू में कंपकपाहट के साथ तेज बुखार, कभी तेज कभी कम, सर दर्द, थकान, जी मिचलना, बदन दर्द, प्यास और कमजोरी होता है।
- बुखार एक निश्चित समय के अंतराल पर आता है।
- अंडकोष में सूजन, दर्द और कड़ापन।
- शरीर में पित्ती निकल सकती है।
- सांस लेने में दिक्कत महसूस हो सकती है।
- उत्तक कठोर होने से अंगों में लचीलापन ख़त्म हो जाती है इसे फाईब्रोसिस कहते हैं।
- पैरों में सूजन, कभी कभी हाथों में भी हो सकता है।
- लिम्फ (लसिका) ग्रंथियों में सूजन, कड़ापन, और दर्द
- महिलाओं के स्तन में भी सूजन, कड़ापन और दर्द।
- फिर हाथी पाँव या एलिफेंटाईसिस का हो जाना।
इस बीमारी के पता चलते ही तुरत ईलाज शुरू कर देना चाहिए क्योंकि पुराना हो जाने और बढ़ जाने के बाद पूरी तरह ठीक नही हो पाता और काफी परेशानी और कष्ट होता है। फाइलेरिया के रोगी प्रायः पेट के बीमारी से भी ग्रसित रहता है, पाचन क्रिया में गड़बड़ी रहती है। फाइलेरिया के सूजन में कभी कभी इतनी जलन और दर्द होता है की लगता है उस जगह से घाव निकलेगा लेकिन ऐसा नही होता है, कभी कभी सूजे हुए भाग में एक्जिमाकी तरह चमड़ा मोटा हो जाता है और पानी भी चलता हैं। त्वचा सुन हो जाता है, चकत्ता और दाने भी होते हैं। इस रोग में लक्षणों का फिर से आने में कई दिन, कई महीनो से लेकर बर्षों तक लग सकते हैं जिससे रोगी सोचता है की रोग लाइलाज है और ईलाज करना ही छोड़ देता है। अगर नियमित रूप से लक्षणों के अनुसार दवाएं ली जाए तो रोग काफी हद तक नियन्त्रण में रहती है और गम्भीर समस्या की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
जाँच -Diagnosis OF Filariasis /Filaria in Hindi
खून की जाँच जिसमें ल्यूकोसाईंटोसिस के कभी कभी इओसिनोफिलिया बढ़ा हुआ रहता है
रक्त में बढ़ा हुआ IgE का स्तर, रक्त में यूरिया की मात्रा, और मूत्र में प्रोटीन की मात्रा।
माइक्रोफाइलेरिया जाँच
लम्फोंगियोग्राफी जाँच
मूत्र परीक्षण
होम्योपैथिक दवाएं –
Homeopathic Medicine For Filariasis
हाइड्रोकोटाइल Q, 200, 1M– यह इस रोग की प्रमुख दवा है, त्वचा का बहुत मोटा हो जाना, हाथी जैसा चमड़ी का हो जाना इस दवा का मुख्य लक्षण है, यह फाईलेरिया और कुष्ट रोग दोनों की मुख्य दवा है। पीठ हाथ, पैर हथेली की चमड़ी मोटी हो जाना, पाँव मोटे हो जाते हैं। अंडकोष की त्वचा का मोटा हो जाना।
एपिस मेल 30, 200 दिन में 3 बार- सूजन का प्रमुख दवा, चमड़ा लाल, गर्म, चमकीला और डंक मारने के जैसे दर्द। रोगी को प्यास नही रहती
आर्सेनिक 30, 200 दिन में 3 बार- अगर पैरों या अंडकोष के फाइलेरिया में सूजन और जलन, बीमारी पुरानी हो चुकी हो।
रस टक्स 30, 200 दिन में 3 बार – ठण्ड से या वर्षा में भीगने से हुए फाईलेरिया में, अगर गर्म सेंक से आराम हो। शुरआती दौर में जब बार बार बुखार आता हो |
कैल्केरिया फ्लोर 12X और फेरम फॉस 6X, 12X दिन में 3 बार 4-4 गोली – हल्का गर्म पानी के साथ।
कैलोट्रोपिस Q, 3X, 30– हाथी पाँव, फाइलेरिया, हाइड्रोसिल की यह भी एक उत्कृष्ट औषधि है
एनाकार्डियम ऑक्स 30, 200 दिन में 3 बार- फाइलेरिया में जब पैर की उँगलियाँ भी मोटी हो जाए, सुन हो जाए
सल्फर 200 , 1M सप्ताह में 1 बार – त्वचा गंदा दिखे, जलन और खुजली हो, रोगी नहाना पसंद नही करता हो, गर्मी से रोग बढ़ता है, ठंड से राहत
बचाव और सावधानी – Filariasis prevention
- कीटाणुरोधक और मच्छरदानी का प्रयोग करें।
- मच्छरों के पनपने की जगह से पानी खाली करना और जगह को उपयुक्त वस्तु से भरना।
- सूजे हिस्से को प्रतिदिन साबुन और पानी से सावधानीपूर्वक स्वच्छ करें।
- लसिका प्रवाह बढ़ाने के लिए सूजे हुए हाथ या पैर को ऊपर उठा कर व्यायाम करें।
- बैक्टीरिया रोधी और फफूंद नाशक क्रीमों के प्रयोग से घावों को संक्रमण से बचाएं।
- सूजे हुए अंग को हमेशा ढक कर रखना चाहिए
- रोगी को पानी अधिक पीना चाहिए, जितना अधिक पेशाब होगा सूजन उतना कम होगा
- रोज गर्म पानी से स्नान करना चाहिए
- अधिक ठंडा या अधिक गर्म पेय पदार्थ नही पीना है
- अधिक मीठा, खट्टा , गरिष्ठ खाना, मसालेदार और अधिक वसा वाला खाना नही खाना चाहिए