बरसात में होनेवाली 7 प्रमुख बीमारियाँ और उनसे बचाव के उपाय
आँत की सूजन या आंत्रशोथ या गैस्ट्रोइंट्राइटिस /गैस्ट्रोएंट्राइटिस
Gastroenteritis
यह बरसात में होनेवाली एक आम बीमारी है जिसे डॉक्टरी भाषा में गैस्ट्रोइंट्राइटिस कहते हैं।
बीमारी कैसे फैलती है..?
मल निकासी (सीवेज ) पाइप से निकले गंदे पानी के पीने वाले पानी में मिल जाने, बरसात के मौसम में सीवेज पाइप के लबालब भर जाने और दूषित पानी के ओवरफ्लो होने, बासी भोजन में मौजूद विषैले जीवाणुओं और खाद्य पदार्थों, फलों और सब्जियों को बिना धोये पकाये जाने और खाने के कारण लोग गैस्ट्रोइंट्राइटिस का शिकार हो जाते हैं। दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन के कुछ घंटों के बाद से लेकर 3-4 दिनों के भीतर व्यक्ति इस बीमारी का शिकार हो सकता है और इसका असर 1घंटे से लेकर कई सप्ताह तक रहता है।
लक्षण और पहचान (Symptoms)
उल्टी और पानी जैसे पतले पाखाना बार बार होना, बुखार रहना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। ये सब होने के कारण डिहाइड्रेशन हो जाता है और ऑंखें धँस जाती है, त्वचा और जीभ सुख जाती है। अधिक प्यास लगने के साथ शरीर में कमजोरी और कभी कभी मांसपेशियों में ऐंठन भी महसूस होती है। छोटे बच्चों में कपाल के बिच कोमल भाग धँस जाते हैं और त्वचा का लचीलापन भी कम हो जाता है।
बचाव और रोकथाम (Prevention)
शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए उबले हुए पानी में इलेक्ट्रॉल या किसी अन्य इलेक्ट्रोलाइट पाउडर (ORS आदि ) घोलकर पीना चाहिए लेकिन ध्यान रहे हाई ब्लड प्रेशर के मरीज इसका सेवन सोच समझकर करें। ये पाउडर के बजाय एक गिलास पानी में एक नींबू का रस निचोड़ कर उसमें थोड़ा सा नमक और 4-5 चम्मच चीनी (1:8) के अनुपात में डाल कर यह घोल तैयार कर सकते हैं, दिन में कई बार इस घोल को पी सकते हैं।
इस दौरान सिर्फ चावल, दही, केले, सेव जैसे चीजों का ही सेवन करें। इस बीमारी से बचने के लिए सावधानी बरतना बहुत जरुरी है जैसे बाहर की चीजों, ठीक से नहीं पका हुआ और बासी खाने का बिलकुल भी सेवन ना करें। पानी को हमेशा फिल्टर करके या उबालकर फिर ठंडा करके पीएं। फलों और सब्जियों आदि को अच्छी तरह से धोकर ही प्रयोग किया जाना चाहिए। हमेशा खाने से पहले हाथ साबुन से धोकर साफ करें और यह सुनिश्चित करें की जो पाइप से पीने का पानी आ रहा है वो कही से क्षतिग्रस्त तो नहीं है। कही इसमें सीवेज का दूषित पानी तो नहीं मिल रहा है। जिस कुआँ का पानी पी रहे हैं उसके आस पास कही दूषित पानी का भंडार तो नहीं है। ऐसे में किसी डॉक्टर से परामर्श से ही दवा लें।
सावधानी
बिना डॉक्टरी सलाह के दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए। हल्के सुपाच्य भोजन जैसे -चावल, दही, सेव और पका केला आदि खाएं मिर्च मसालेदार और चिकनाईयुक्त चीजों से बचना चाहिए।
डॉक्टरी सलाह कब लें
रोगी के शरीर में पानी की कमी के लक्षण नजर आते ही डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए। खासकर छोटे बच्चों में डिहाइड्रेशन बहुत तेजी से होता है। यदि बच्चे को कुछ घंटों में ही 10-15 बार उल्टियाँ होती है या एक दिन से ज्यादा समय तक उल्टी रुक रुककर होती रहती है या एक दिन से ज्यादा समय तक रुक रुककर होती रहती है तो ऐसी स्थति में डॉक्टरी सहायता की बहुत जरुरत होती है।
प्रमुख होम्योपैथिक दवाएं
- प्रथम अवस्था में जब अत्यधिक प्यास और बेचैनी के साथ उलटी और दस्त हो – आर्सेनिक एल्ब 30और इपिकाक 30 हर आधे घंटे पर
- अगर उलटी और दस्त लगातार हों, बंद होने का नाम न ले , सारा शरीर नीला पड़ जाए, ठंडा पानी पिने की इच्छा हो – विरेट्रम एल्ब 30 हर आधे घंटे पर
- अत्यधिक उलटी और दस्त के बाद जब रोगी ठंडा पड़ने लगे और हमेशा पंखा करवाना चाहे – कार्वो वेज 30, दिन में 3-4 बार
बेसिलरी डिसेंट्री
Bacillary dysentry
यह बीमारी शिगैला वर्ग के जीवाणुओं शिगा, फ्लेक्सनर और सॉने द्वारा फैलती है। ये रोग मक्खियों के जरिये भोजन तथा पानी तक पहुंच कर दूषित कर देते हैं। गैस्ट्रोइंट्राइटिस की तरह ही इस बीमारी में दूषित भोजन या पानी के सेवन से होती है। बेसिलरी डिसेंट्री के रोगाणु बड़ी आँत में पहुंचकर 2 से 3 3 दिनों में विकसित हो जाते हैं और उनके ईलाज में प्रायः एक-दो से लेकर चार-पांच दिन तक समय लग सकता है।
लक्षण (Symptoms of Bacillary dysentry)
भूख न लगना, उलटी, एक ही दिन में रोगी को तीन से बारह बार तक दस्त आते हैं जो की धीरे धीरे कम होते जाते हैं। शौच श्लेष्मा (म्यूकस) युक्त होता है। कभी कभी पेट में मरोड़ और दर्द उठता है, बुखार भी कुछ मामलों में देखने को मिलता है।
डॉक्टरी सलाह
दस्त के कम ना होने और ज्यादा उल्टियाँ होने पर फौरन डॉक्टरी सलाह लें।
प्रमुख होम्योपैथिक दवाएं
- जब दस्त में खून की मात्रा बहुत ज्यादा हो और मल की मात्रा कम हो , दस्त आने से पहले और बाद में मुंह में लार भर आना और दस्त जाने के बाद भी पेट में मरोड़ वाली दर्द बना रहे – मर्क कौर 30, दिन में 4 बार
- दस्त में खून की अपेक्षा आंव (म्यूकस) की मात्रा बहुत ज्यादा हो – मर्क सोल 30 दिन में 3 बार
- जब उबकाई और उलटी खूब आये – इपिकाक 30 , दिन में 3-4 बार
- अगर वर्षा में भीगने या नमी वाले जगह पर रहने से रोग हो – रस टॉक्स30 , दिन में 4 बार
चावल का पानी, जूस, सूप, मट्ठा आदि दें
हैजा (कॉलेरा)
Cholera
यह बीमारी एक तरह के जहरीले जीवाणु कॉमा-बेसिलस से होता है जो दूषित पानी के जरिये आँतों में पहुँच जाने के कारण होती है। बाढ़ आदि के बाद पानी के जमाव या किसी दुसरे तरीकों से जल प्रदूषण हो जाने के बाद यह बीमारी महामारी का रूप धारण कर लेती है और 1 से 3 दिन के भीतर उग्र रूप धारण कर लेती है। हालांकि यह छुआछूत की बीमारी नहीं है लेकिन एपिडेमिक यानी तुरंत बहुत बड़े पैमाने पर फैल जाने वाली बीमारी है।
लक्षण (symptoms of cholera)
- यह रोग पहले पतले और झाग वाले दस्त के लक्षण से प्रकट होता है और साथ ही सर दर्द, सर में चक्कर, उल्टी या जी मिचलाने के भी लक्षण रहते हैं।
- शुरू के दस्त में कुछ रंग होते हैं लेकिन जल्द ही यह रंग चले जाते हैं और चावल के धोवन की तरह या माड़ की तरह या नल के पानी की तरह रंगहीन होने लगते हैं।
- प्यास, बेचैनी, शारीर में ऐंठन, ठंडापन, बहुत ज्यादा कमजोरी
- बहुत ज्यादा दस्त होने पर कितनी बार पेट में दर्द नहीं रहता है, नहीं तो पेट में दर्द बना रहता है।
- क्रमशः बहुत तेज प्यास, ऐंठन, पेशाब बंद हो जाना, चेहरा नीला पड़ जाना, त्वचा, खासकर हाथ पाँव की उंगलियों की त्वचा का सिकुड़ जाना, ठंडी पसीना, सांस में कष्ट, नाड़ी क्षीण, हिचकी आदि लक्षण प्रकट होने लगते हैं और बीमारी खतरनाक और जानलेवा बन जाती है।
बचाव और रोकथाम
उल्टी और दस्त रोकने वाली दवाएं लें। डिहाइड्रेशन से बचने के लिए ORS घोल या इलेक्ट्राल का घोल लें या नमक चीनी नींबू पानी का घोल लें (जीवन रक्षक घोल) बनाने की विधि ऊपर में बताया जा चूका है। बिल्कुल हल्का और सुपाच्य भोजन लें। बासी खाने, सड़ी गली चीजें , गंदे पानी, और बाहर की खाने की चीजों आदि से पूरी तरह से बचें।
जब शरीर में पानी की तेजी से कमी हो रही हो, बीमारी ने महामारी का रूप धारण कर लिया हो या उल्टी और दस्त पर काबू ना हो रहा हो, ऐसी स्थति में मरीज का तुरत हॉस्पिटल में भर्ती कर देना चाहिए।
प्रमुख होम्योपैथिक दवाएं (homeopathic medicine for cholera)
विरेट्रम एल्ब 30, आर्सेनिक एल्ब 30 और कार्वो वेज 30 तीनों दवाएं बारी बारी से हर 10-15 मिनट के अंतर से दें
मलेरिया (Malaria)
मच्छरों के काटने से उनके लार में मौजूद प्लाज्मोडियम वाइवेक्स और प्लाज्मोडियम फैल्सीपैरम से होती है। अंडे देने के पहले मादा एनाफिलीज मच्छर का खून की जरुरत होती है, खून के लिए जब मादा मच्छर किसी आदमी का काटती है तो उस व्यक्ति के खून में यह परजीवी चला जाता है। मच्छर के काटने के बाद ये परजीवी 10-15 दिनों में व्यक्ति को मलेरिया से ग्रसित कर देता है।
मलेरिया का बदलता रूप
कुछ डॉक्टरों के अनुसार मलेरिया अपना पुराना स्वरूप बदल रहा है, मलेरिया के कुछ प्रकार ऐसे भी हैं जिनमे उसका स्वरूप अतिसार जैसा होता है। कुछ प्रकारों में तो मलेरिया का रोगी मानसिक रोग से पीड़ित रोगी के जैसा लगने लगता है। मलेरिया की 4 प्रकार हैं
प्लाज्मोडियम फैलसीपैरम, प्लाज्मोडियम वाइवैक्स, प्लाज्मोडियम ओवले और प्लाज्मोडियम मलेरियाई। इसमें शुरू वाले 2 तरह के मामले अधिक पाए जाते हैं। प्लाज्मोडियम वाइवेक्स में रोगी को कँपकँपी के साथ बुखार आता है और मलेरिया के दुसरे लक्षण भी आते हैं। जबकि प्लाज्मोडियम फैल्सीपैरम का असर दिमाग पर होता है। अगर जल्दी इसका ईलाज नहीं किया जाय तो रोगी की मौत हो जाती है।
मलेरिया के लक्षण (Symptoms of malaria)
अचानक बुखार आना, रह रहकर कँपकँपी के साथ खूब ठंड लगना, पसीना आना, सिरदर्द और उल्टी होना आदि प्रमुख लक्षण हैं। बुखार रह रहकर भी आ सकता है पर एक दिन छोड़ कर प्रायः आता है और इस बीच शरीर का तापमान ठीक रहता है। बदन दर्द और हाथ पैर में दर्द की शिकायत हो सकती है। वैसे 3-4 दिन में बीमारी ठीक हो जाती है मगर 8से 30 दिनों के भीतर या उससे अधिक समय में यह फिर से उभर सकती है।
बचाव और रोकथाम
रोगी को पूरी तरह बिस्तर पर आराम करने दें। तेज बुखार और सर दर्द की स्थिति में बर्फ से सेकाई कर सकते हैं। तरल पदार्थ पीएं। मिर्च और मसालेदार भोजन न करें।
प्रमुख होम्योपैथिक दवाएं (homeopathic medicine for malaria)
चाइना, आर्सेनिक, युपेटोरियम पर्फ, नक्स वोम, रस टक्स, ब्रायोनिया आदि लक्षणों के अनुसार दिया जाना चाहिए
ब्रोन्कियल अस्थमा Bronchial Asthma
ब्रौन्कियल (श्वास नली ) अस्थमा नमी (आर्दता), धूल, बरसात में उगने वाले फफूँद और मौसम के एलर्जी के कारण होता है। रोगी को हर साल बारिश या जाड़े के मौसम में नियमित रूप से अस्थमा की तकलीफ हो सकती है।
लक्षण
सांस का उखड़ना, सुखी खांसी और घबराहट इसके प्रमुख लक्षण है। इस तरह की तकलीफ कभी भी कम हो जा सकती है। अस्थमा दौरे की शुरुआत छींक आने और नाक बहने के साथ हो सकती है। कभी कभी रोगी को बहुत ज्यादा ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, यह अवस्था कुछ घंटों से लेकर कुछ हफ्तों तक हो सकती है।
बचाव और सावधानी
ब्रोंकियल अस्थमा की स्थिति में दिन में 2 बार गर्म पानी की भाप सांस के जरिये खींचे। नियमित रूप से गहरी सांस लेने का व्यायाम करें। इसके दौरे से बचने के लिए सभी उचित सावधानियां बरतें। अगर बरसात में ज्यादा होती है तो भीगने से बचना जरूरी है।
प्रमुख होम्योपैथिक दवाएं
अस्थमा रोग देखें
क्लेमायडिया (chlamydiya) और अन्य जीवाणुओं के कारण आंख आती है। हाथ मिलाने, शारीरिक सम्पर्क आदि कारणों से यह छूत की बीमारी बहुत तेजी से फैलती है। बीमारी कुछ घंटों से लेकर दिन भर में उग्र रूप धारण कर लेती है।
लक्षण
नेत्र-श्लैष्मिका (कंजंक्टिवा) में प्रदाह के कारण आँखें लाल होकर सूज जाती है। आंख से खूब पानी बहता है और खूब खुजलाहट होती है, करकराहट, पपड़ी जमना, नाक बहने लगती है, सर दर्द होता है, आँखें रोशनी बर्दास्त नहीं करती है। रोग 4 दिन से लेकर कुछ हफ्तों तक रह सकता है।
बचाव और सावधानी
साफ पानी या डिस्टिल्ड वाटर से आंख को दिन में कई बार धोना चाहिए। बाहर निकलते समय धुप से बचें, काला या गहरे रंग का चश्मा लगाएं। रोगी के सम्पर्क में न आएं और न ही उसके छुए हुए वस्तु को छुएं क्युकी यह छुआछूत वाली बीमारी है।
प्रमुख होम्योपैथिक दवाएं
homoeopathic medicine
- जब आँखों में दर्द और लाली बढ़ जाये और रोगी को रौशनी सहन नहीं लगे – बेलाडोना 30 , दिन में 4 बार
- आँखों से जलन पैदा करने वाला पानी का स्राव, नाक से पनीला स्राव, ऑंखें लाल, ऑंखें चिपक जाती हो – युफ्रेशिया 30 और अर्जेन्टम नाइट्रिकम 30, दिन में 4 बार
- जब स्राव काफी गाढ़ा और पीला हो – पल्साटिला 30, दिन में 4 बार
घमौरियां ghamori/ prickly heat
घमोरी
नमी और गर्मी के कारण घमौरियां निकलती हैं। घमौरियां प्रायः बरसात में ज्यादा निकलती हैं, नमी के वातावरण में त्वचा में स्वेद ग्रंथि के छिद्रों के बंद हो जाने से घमौरियां निकलती हैं
लक्षण
खुजली होती है। त्वचा पर लाल ददोरे पड़ जाते हैं तथा जलन होती है। इसका प्रकोप अधिकतर चेहरे, गर्दन, पीठ, सीने, जाँघ और काँख पर पड़ता है। त्वचा जहाँ जहाँ मुड़ती है वहा इसका प्रकोप बहुत रहता है। यह संक्रामक या छूत का बीमारी नहीं है। घमौरियाँ ठीक होने में कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक लग सकते हैं।
बचाव और रोकथाम
दिन में दो तीन बार स्नान करें। ढीले ढले सूती कपड़े पहने। साबुन या शेविंग क्रीम लगाने के बाद उसे अच्छी तरह पानी से साफ कर लें। अगर काफी समय तक घमौरियाँ ठीक न हुई हो और उसमें इन्फेक्शन की स्थिति पैदा हो गयी हो तो डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।