Arsenic album
or
Arsenic alb
आर्सेनिक एल्बम
Arsenic album homeopathy uses in hindi
छटपटी और उसके साथ इधर-उधर करवट बदलना यह लक्षण एकोनाइट में भी है, लेकिन एकोनाइट किसी भी बीमारी कि पहले अवस्था में दी जाती है लेकिन अगर रोगी बीमारी से पहले से ही ग्रसित होकर कमजोर हो चूका है और हिलने डुलने का शक्ति नहीं रहता है फिर भी भीतरी दाह और छटपटी से इधर-उधर करवट और जगह बदलते रहना चाहता है तब आर्सेनिक का प्रयोग किया जाता है। मानसिक बेचैनी बहुत अधिक रहता है, एकोनाइट की तरह इसमें भी मृत्यु का भय होता है और रोगी अपने जीवन से निराश रहता है। रोगी कहता है कि इलाज होने से कुछ नहीं होगा मृत्यु ही होने वाला है। दर्द बिल्कुल नहीं रहने के बावजूद भीतरी दाह के वजह से स्थिर नहीं रह सकता।
सड़ा, बासी या खराब खाना आदि खाने के बाद बीमारी हो जाना। अच्छे भोजन के अभाव में शरीर कमजोर होते जाना और खून की कमी हो जाना। भीतरी दाह, कमजोरी और छटपटी ही आर्सेनिक का चुनाव करने का सबसे प्रमुख लक्षण है, जलन जो छटपटी की तरह हो यह भी आर्सेनिक का सबसे प्रमुख लक्षण है आर्सेनिक का जलन ठंड से बढ़ता है और गर्मी से घटता है। इसके अलावे कोई विषैले कीड़े मकोड़े काट लेने पर भी यह फायदेमंद है।
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कैंसर, घाव, पुरानी नकसीर, गर्भावस्था में उल्टी होना इत्यादि में छटपटाहट, जलन और दर्द हो तो आर्सेनिक ही लाभदायक है।
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किसी एक बंधे समय पर या हर साल रोग का लक्षण प्रकट हो जाना।
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तुरत में ठंड या सर्दी लगना और नाक से पानी बहना, छींक आना, सर्दी हो जाना इत्यादि परेशानी बढ़ जाते हैं।
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दोपहर या आधी रात के बाद बीमारी का बढ़ जाना।
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नहीं मिटने वाला प्यास।
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मानसिक उद्वेग और मृत्यु भय
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बहुत ज्यादा सुस्ती कमजोरी और बेचैनी।
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जलन पैदा करने वाले दर्द।
सिर
सिर दर्द में ठंडक से राहत मिलती है जबकि अन्य लक्षणों में वृद्धि होती है नियत कालीन जलन पैदा करने वाले दर्दों के साथ बेचैनी, साथ ही त्वचा ठंडी रहती है आधासीसी के दर्द के साथ खोपड़ी में बर्फीली ठंड की अनुभूति एवं जबरदस्त कमजोरी होना। पागल जैसा बकबक करना खोपड़ी में बहुत ज्यादा खुजली होना खुश्क पपड़ी होना, खुरदरे, और गंदे गोल गोल चक्कते। खोपड़ी इतना संवेदनशील होना कि बालों को कंघी भी नहीं कर सकता।
सर्दी खांसी
नाक से गर्म और जलन करने वाला पानी गिरना जहां पानी लगे वहां की खाल उखाड़ देना साथ में बहुत छींक आना। एक तरह का सूखी खांसी जो तीसरे पहर और शाम के समय बढ़ जाती है, बलगम बिल्कुल नहीं निकलता है और सांस नली सूखा रहता है खांसी खूब जल्दी-जल्दी आती है रोगी को सांस छोड़ने और लेने में बहुत तकलीफ होती है। दौरे के तरह उठने वाली खाँसी, काली खाँसी, खाँसी जो व्यायाम करने पर बढ़ जाती है , खांसने से पहले बच्चा रोता है, ऐंठनवाली खाँसी , छाती के अंदर पुरे पसलियों में दर्द होना।
छींक
रह रह कर छींक आना, झोंके के साथ छींक आना, इतना जल्दी जल्दी छींक आता है कि सांस लेने का भी उसको समय नहीं मिलता और वह थक जाता है।
आंखें
आंखों से जलन होने के साथ ही तीखे पानी निकलना पलके लाल जख्मी पपड़ी दार, छिलके दार जलन पैदा करने वाला गर्म और त्वचा छील देने वाला आंखों से पानी निकलना, प्रकाश सहन नहीं होना।
गंध सहन नहीं होना
भोजन की ओर देखने और उसकी गंध को सहन करना मुश्किल, इन चीजों से घृणा और अरुचि हो जाना।
आमाशय (Stomach)
खाने-पीने के तुरंत बाद मिचली, उबकाई, वमन होना, तल पेट में बेचैनी रहती है, जलन शील दर्द, अम्लीय चीजों एवं कॉफी की बहुत ज्यादा खाने की चाह होती है, कलेजे में जलन। लंबा समय तक डकार आना। शाकाहार, खरबूजा, तरबूजा और अन्य सभी पानी वाले फलों के खाने के बाद दुष्प्रभाव प्रकट हो जाना।
पेट (Abdomen)
कतरने जैसे तथा अंगारों से उठने वाली लहरों की तरह जलन शील दर्द होना, यकृत और प्लीहा बढ़े हुए तथा दर्द युक्त, जलोदर, पेट सूजा हुआ तथा दर्द होना, खाने पर पेट में किसी घाव के होने के जैसा दर्द होना।
अतिसार (Diarrhoea)
हरे, पीले, काले, पानी की तरह खून मिला हुआ आदि के तरह कम मात्रा में दस्त होना, सड़ा हुआ सा दस्त होना उसमें सड़ी दुर्गंध आना, साथ ही शरीर में दाह और छटपटी, ठंडी पानी पीने की इच्छा मगर पानी पीते ही पेट का दर्द बढ़ जाता है और साथ ही दस्त होता है और उल्टी होती है। कुछ खाते पीते ही बीमारी का बढ़ जाना।
दमा – खांसी (Asthma)
सांस लेने में कष्ट, दमा का खिंचाव आधी रात के समय बढ़ जाना भीतरी दाह और छटपटी, रोगी का सिर नीचा करके तकिए पर भार देकर बैठे रहना। शक्ति नहीं रहना छाती में दबाव दम घुटने का आभास होना, छाती में साईं साईं आवाज होना, बलगम बिल्कुल नहीं निकलना या बहुत कम मात्रा में झाग जैसा बलगम निकलना जिसमें खून मिला होना, लेटने में असमर्थ, श्वास नलियों का सिकुड़न, साथ में कंधों के बीच में दर्द होना।
हृदय (Heart)
धड़कन, दर्द, बेहोशी, तंबाकू पीने और चबाने वालों में हृदय का उत्तेजित होना, प्रातः काल नाड़ी अधिक तेज हो जाना, ह्रदय का फैल जाना ह्रदय में दर्द होना, सांस लेने में कष्ट, साथ में गर्दन और सिर के पिछले भाग में दर्द होना।
त्वचा (Skin)
खुजली, जलन, सूजन होना उद्भेद निकलना, सुखे और खुरदरी भूसी की तरह पपड़ी वाले, ठंड एवं खुजलाने से वृद्धि होना, बदबूदार स्राव निकलने वाले घाव होना, जख्म होना, सोरायसिस होना, कैंसर अकौता, काले रंग के उद्भेद और फोड़े फुंसी आदि निकलना।
वह्यांग
कंपन, फड़कन ऐंठन, कमजोरी, भारीपन, बेचैनी पिंडलियों में दर्द होना, पैरों में सूजन, जलन युक्त दर्द। उंगली के नोक से लेकर कंधे तक खींचने झटकने और नोच फेंकने की तरह दर्द होना, रात में जिस करवट सोए उसी ओर हाथ में दर्द होना, पैर और पैर के तलवे सुन पड़ जाना या झुनझुनी पैदा हो जाना।
मूत्र
कम मात्रा में ज्वलनशील, बिना इच्छा के, मूत्राशय मानो पक्षाघात से ग्रस्त हो, मूत्र में एल्ब्यूमिन की मात्रा अधिक हो जाना, पेशाब करने के बाद पेट में कमजोरी का अनुभव होना, ब्राइट रोग, मधुमेह।
बाबासीर
बवासीर में आग से जलने की तरह जलन होना जो ठंडे प्रयोग से ना घटकर गर्म प्रयोग से घटती है।
घाव
किसी भी घाव में जलन और बदबूदार स्राव खाल गल जाना इत्यादि लक्षण रहने पर आर्सेनिक फायदेमंद है। मुंह और जीभ के घाव या छाले मुंह के घाव जिसमें सड़न होने लगे खासकर बच्चों में, मुंह का स्वाद सड़ा, तीता खट्टा मीठा धातु जैसा या अलग अलग प्रकार के स्वाद अनुभव करता है।
ज्वर
तेज बुखार के साथ छटपटी, कमजोरी और अंदर से दाह। जैसे जैसे बुखार बढ़ता है वैसे वैसे छटपटी और कमजोरी बढ़ता जाता है। बुखार की बढ़ी हुई अवस्था। मलेरिया, कुनैन के प्रयोग से रुका हुआ बुखार। प्रतिवर्ष एक नियत समय पर आने वाला बुखार।
स्त्री रोग
जरायु के बहुत सारे बीमारियों जैसे जरायु का घाव, कैंसर, रक्तस्राव के साथ बहुत अधिक जलन रहने पर आर्सेनिक का प्रयोग किया जाता है।
ऋतुस्राव न होकर प्रदर का स्राव होकर रोगी कमजोर होते जाती है । प्रदर का स्राव से योनी की खल गल जाती है, जलन होती है और स्राव बहुत बदबूदार होती है।
हैजा
हैजा की शुरू की अवस्था में आर्सेनिक फायदा नहीं करती है बाद की अवस्था और बढ़ी हुई अवस्था में ही आर्सेनिक फायदेमंद है, नाड़ी क्षीण हो जाने की स्थिति में, जब तक प्यास , बेचैनी और छटपटी न हो तो इस दवा का प्रयोग करने से कोई लाभ नहीं होता। अमिट प्यास, थोडा थोडा पानी पीता है मगर प्यास खतम नहीं होती , पानी पीते ही कई सारे कष्ट बढ़ जाते हैं।
वृद्धि– आधी रात के बाद, दिन के 1:00 से 2:00 के बीच में, सर्दी लगने पर, ठंडा खाने पीने पर, समुद्र किनारे से
कमी – गर्मी से, सिर को ऊंचा रखने पर, गर्म पेय पदार्थ से
रोग का कारण
जल से, ठंडा से, बर्फ खाने से, दूषित या बासी भोजन, फल खाने से, मदिरा, तंबाकू, आयोडीन के दुष्प्रभाव, समुद्र में नहाने से यात्रा करने से, पर्वत पर चढ़ाई करने से थकान से, दुख, भय से।