Aesculus hippocastanum
Aesculus hipp
(एस्कुलस हिप्प)
यूरोप और अमेरिका में पाया जानेवाला एक तरह का पेड़ से टिंचर तैयार होता है।
यह बबासीर और स्त्री रोग इत्यादि में प्रयोग किया जाने वाला एक प्रसिद्ध दवाई है।
इस दवा की क्रिया निचली आंत पर होती है, मुख्यतः यह बवासीर और आंतों तथा पेट से संबंधित बीमारी में प्रयोग किया जाता है। लिवर की क्रिया में कोई बदलाव या किसी अन्य कारणों से मलद्वार के बगल और भीतरी श्लैष्मिक झिल्ली की हिमरॉइडल शिराओं में खून की अधिकता होकर वह फूल जाती है, तथा फट जाती है और मलद्वार से खून निकलने लगती है जिसे खुनी बबासीर कहा जाता है।
बवासीर वाली शिराओं में रक्त संचित होता रहता है और वे फूल जाती हैं. साथ में कमर मे दर्द भी होता है लेकिन वास्तव में कब्ज नहीं रहता. अत्यधिक दर्द, लेकिन हल्का रक्त स्राव, शिरायें (vericos veins) फूल जाती है और उसका रंग बैंगनी हो जाता है, और पाचन शक्ति मंद हो जाती है साथ ही हृदय और आतें मंद हो जाती है।
बवासीर और बवासीर का मस्सा। कमर और कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द, जिससे काम आदि नहीं कर पाना (मैक्रोटिन), कब्ज, कांच निकलना (हर्निया), श्वेत प्रदर, ऋतुस्राव का रंग कालिमा लिए, गाढ़ा, खाल गला देने वाला, बवासीर के साथ पित्त वृद्धि और पेट का दर्द, गलकोष की ग्रंथि वृद्धि के साथ गलकोष का प्रदाह।
चारित्रिक लक्षण
शरीर के कई स्थानों में जैसे हृत्पिंड, फेफड़े, पाकस्थली, मस्तिष्क, तलपेट, चर्म आदि स्थानों में ऐसा मालूम होना जैसे बहुत सा खून जमा हुआ है। हमेशा दुखी और क्रोधित रहना। यकृत तथा हिमरॉइडल शिरा (मलनली का नीचे का शिरा) में रक्त जमा होना तथा दर्द होना। मुंह, गला, मलनली इत्यादि श्लैष्मिक झिल्ली का फूलना और दर्द होना, जलन और सूखापन महसूस होना। नाक से पानी की तरह कच्चे जुकाम का स्राव, जलन, नाक में घाव की तरह दर्द, ठंडी हवा लगने से परेशानी ज्यादा बढ़ना। बवासीर, मलद्वार में जलन, खुजली, सूखापन, गर्मी और भार महसूस होना, ऐसा मालूम होना जैसे मलद्वार में कीलें ठोक दी गयी है। कमर और कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द और साथ में कब्ज। गर्भावस्था में कमर में दर्द, जरायु का अपने जगह से हट जाना (प्रोलैप्सस), श्वेत प्रदर। गलकोष का प्रदाह-गले में जलन, गले में गड़ने जैसा दर्द और सूखापन, सूखा खाँसी।
कमर में लगातार धीमा धीमा दर्द होता है और लगता है कि कमर टूट गई है और जिस से किसी काम में मन नहीं लगता. ऐसा लगता है कि शरीर के कई हिस्सों में खून जमा हो गया है.
सिर
उदास और चिड़चिड़ा। सर भारी, दर्दनाक जैसे ठंड लग गई है. मितली और माथे पर दवाब. कुचले जाने जैसा दर्द, सुबह के समय अधिक.
आँख
आँखे भारी और गरम, साथ ही पानी बहना, दर्दनाक.
नाक
सुखी, जुकाम और छींके, नाक की हड्डियाँ तनी और फूली हुई
मुँह
कसैला स्वाद, ऐसा महसूस होता है जैसे गरम पानी से जल गया है, जीभ पर मोटी परत जम जाती है. लार बहती है.
कंठ
गरम, खुश्क, खुरदुरा, निगलते समय कानों में सुई चुभने जैसा दर्द. गला सिकुड़ा हुआ और छिला हुआ महसूस होता है
पेट और अमाशय
नाभि में हल्का हल्का दर्द. यकृत के आसपास दर्द और भारीपन. पत्थर रखा होने जैसा अनुभव और दर्द जो खाना खाने के 2-3 घंटे बाद शुरू होता है।
बवासीर
शुष्क, हल्का हल्का दर्द। मलद्वार भीगा मालूम पड़ना। मलद्वार में खुजली, जलन मस्सा। दर्द, ऐसा लगता है जैसे छोटी छोटी लकड़ी के टुकड़े भरा हुआ है। मलद्वार खुरदुरा, दर्दनाक। मल त्याग करने के बाद जलन और तेज दर्द। प्रायः इसके बवासीर में खून नहीं निकलता है या बीमारी पुराना हो जाने पर खून भी निकलता है, बवासीर के साथ पीठ में गोली की तरह ऊपर चढ़ता हुआ दर्द। कमर दर्द। बादी और खूनी बवासीर। मलद्वार में जलन के साथ पीठ में ऊपर नीचे ठंड का होते रहना। दर्द जो आराम करने पर घटता है लेकिन हिलने डुलने पर बढ़ता है।
नक्स वोमिका -इसके बवासीर में अक्सर खून निकला करता है, पाखाना लगता है लेकिन होता नहीं है तथा दर्द उतना नहीं रहता। नक्स से अगर बीमारी कुछ घट जाने पर सल्फर से फायदा होता है।
रैटन्हिया – मलद्वार में काँच के टुकड़े से गड़ना मगर जलन काफी तेज जैसे मिर्च का पाउडर लगा दिया हो। पाखाना हो जाने पर काफी देर तक मलद्वार में असहनीय दर्द और जलन। एस्क्युलस में पाखाना जाने के बाद देर से लेकिन रैटन्हिया में पाखाना होने के बाद तुरत ही जलन शुरू हो जाती है।
कॉलिन्सोनिया – बवासीर से लगातार खून आता रहता है, खून नहीं निकलने पर भी इससे फायदा होता है। रोगी ऐसा महसूस करता है जैसे मलद्वार में धारदार काँटी गड़ी हुई है। परेशानी रात में ज्यादा बढ़ जाती है। भारी कब्ज, मल कड़ा और गेंद की तरह गोल।
एलो – इसके बवासीर में ठंडे पानी का प्रयोग करने पर परेशानी कम हो जाती है। इसका एक खास लक्षण यह है की वायु निकलने के साथ या पेशाब के वेग के साथ अनजाने में पाखाना निकल जाता है, पेट में वायु।
हैमामेलिस – बहुत ज्यादा मात्रा में खून निकलना। रक्तस्राव
स्त्री रोग
गर्भाशय टेढ़ा हो जाना या घूम जाना, जरायु -ग्रीवा फूल जाना, दर्द, टपक, जरायु कड़ा हो जाना। पीले रंग का प्रदर स्राव साथ में कमर दर्द।
खाँसी – सुबह के समय बलगम ज्यादा निकलना, गला फसा रहना, गले में घाव, दर्द, सूखापन, जलन, पुराना गलकोष प्रदाह (chronic pharyngitis).
सबंध – बवासीर में कॉलिन्सोनिया के बाद इस्क्युलस के प्रयोग से बीमारी बिल्कुल ठीक हो जाता है। नक्स और सल्फर से फायदा नहीं होने पर इस दवा का प्रयोग करना चाहिए।
क्रियानाशक
नक्स वोमिका
पोटेंसी – Q, 3x, 6x, 30, 200