Asthma Treatment (दमा का ईलाज)
गले की सांस की नली को ‘ट्रैकिया’ (Trachea) कहते हैं। यह दो नलियों। में बंट जाती है जिन्हें ‘ब्रोंकाई (Bronchi) कहते हैं। इन दोनों में से एक नली दायें और दूसरी बायें फेफड़े में चली जाती है। जब इन दोनों नलियों (Bronchi) में तथा फेफड़े में ‘शलेष्मा’ (Mucous) जमा हो जाता है, निकाले नहीं निकलता या मुश्किल से, खांस-खांस कर निकलता है, तब इसे दमा कहते हैं। रोगी को सांस लेने में बहुत कठिनाई होती है, वह सीधा बैठ जाता है, सिर पीछे की तरफ़ कर के दोनों हाथ भी पीछे को फैला देता है ताकि सांस ले सके, घुटते दम को कुछ सहूलियत मिले। सांस की नलियों और फेफड़े मे शलेमा भरे होने के कारण फेफड़े से सांय-सांय की आवाज़ आती है, सारी छाती में सीटियां-सी बजती हैं, रोगी हवा के लिये तरसता है। उस समय उसका चेहरा पीला पड़ जाता है, चेहरे तथा आंखों से बेचैनी टपकती है, माथा ठंडे पसीने से तर हो जाता है। इस प्रकार के दौरा प्रायः रात को हुआ करते हैं।
दमे के इलाज के लिये यह जानना बहुत ज्ररूरी है की रोग का आक्रमण किस समय और कितना बजे होता है। श्लेष्मा–कफ़ निकल जाने से रोगी को कुछ राहत मिलती है। दमे से कोई मरता नहीं, प्रायः दमे के रोगी दीर्घजीवी होते हैं क्योंकि रोगी होने के कारण वे खाने-पीने, रहन-सहन में अनियमितता करने का साहस नहीं कर सकते। दमे का आक्रमण कुछ मिनटों या कुछ घंटों तक रह सकता है। यह रोग युवावस्था में इतना नहीं होता जितना वृद्धावस्था में पाया जाता है।
लक्षण (Asthma Symptoms)
• सांस लेने में खिंचाव, सांस में कष्ट, गले में सांय, रोगी बिछावन पर नही लेट सकता है
• दोनों हाथो पर भार देकर या तकिये का सहारा लेकर झुक कर बैठा रहता है
• खांसता है और हांफता है, हवा चाहता है और इसके लिए खिड़कियाँ और दरवाजे खोल देता है
• दौरा होने के समय बहुत भयानक कष्ट होता है लेकिन फिर ठीक रहता है
• सांस लेने समय परेशानी नहीं होती है लेकिन सांस छोड़ते समय काफी तकलीफ महसूस होती है
• किसी किसी रोगी को दमा का दौरा महिना में 1-2 बार होता है और किसी किसी को 6-8 महीने में 1-2 बार
• यह रोग वंशानुगत भी हो सकता है।
ईलाज (Asthma Treatment)
होम्योपैथिक दवाइयां (Homeopathic medicine for Asthma)
ऐकोनाइट Q, 30, तथा इपिकाक 30- बारी बारी से शुरु-शुरु में रोग की उग्रता को कम करने के लिये इन दोनों औषधियों को आधे-आधे घंटे या और जल्दी एक-दूसरे के बाद देना चाहिये जिस से सांस देने तथा कफ़ पर काबू पाने में सहायता मिलती है।
इपिकाक– मिचली आना, कलेजे में संकुचन और दम घुटे, जीभ साफ़ हो, बलगम की घड़घड़ाहट इपिकाक तथा ऐन्टिम टार्ट दोनों में है। इन में अंतर यह है कि ऐन्टिम टार्ट का कफ़ घड़घड़ तो करता है, परन्तु निकलता मुश्किल से है, इपिकाक का कफ घड़घड़ भी करता है और निकलता भी आसानी से। है। इसलिये घड़घड़ाने वाले कठोर कफ़ को पहले ऐन्टिम टार्ट से ढीला कर लेना चाहिये। कभी-कभी छाती में कफ़ तो होता है परन्तु वह वहीं सूकने लगता है। रोगी सोचता है कि लाभ हो रहा है, लेकिन लाभ न होकर कफ़ छाती में सूख कर जमा हो रहा होता है जो आगे कष्ट का कारण बनता है। कि ऐसी हालत में ऐन्टिम टार्ट के कई डोज़ देकर कफ़ को बढ़ा लेना चाहिये ताकि पीछे इपिकाक से उसे निकाल दिया जा सके।
ब्लाटा ओरियेन्टेलिस, मूल-अर्क (Q)– दमा के लिए प्रमुख दवा, जब दमे का दौर हो तब तुरत घटाने के लिए मूलअर्क के 10-15 बूंद बार-बार गर्म पानी में देना चाहिए। जब दौर निकल जाय तब बचे-खुचे के लिये उच्च-शक्ति (1M) देना चाहिए ।
ब्लाटा ओरियेन्टेलिस Q, सेनेगा Q , ग्रिन्डिलिया Q, कैशिया सोफोरा Q – दमे के प्रकोप को कम करने के लिए जब दम घुटे, सांस न ली जाय तो इन सब को बराबर मात्रा में मिलाकर देना चाहिए।
कैलि बाईक्रोम 30 – इस का आक्रमण भी आर्सेनिक की तरह मध्य-रात्रि में या मध्य-रात्रि के बाद 3-4 बजे होता है, लेकिन इसमें तारदार कफ़ निकलता है, सूतदार कफ, चिटकने वाला।
एण्टिम टार्ट 6, 30, 200—गलेमें साँय-साँय करता है, घड़घड़ आवाज होती है, चेहरा और मुँह नीला हो जाता है (cyanosis)।
एरालिया Q, 30–साँस लेनेमें तकलीफ, दिन-रात सिर झुकाये कोहने पर भार देकर बैठा रहता है, लेट नहीं सकता।
आर्सेनिक एल्बम 30, 200—नये (Acute) या पुराने (Chronic) किसी तरह के दमे के लिये यह भी एक मुख्य दवा है, इसका आक्रमण 1 से 2 बजे, मध्यरात्रि या उसके बाद होता है। लेटने से भी रोग बढ़ता है, रोगी बैठा रहता है। इपिकाक के बाद आर्सेनिक दिया जा सकता है, बेचैनी, साँस लेने-छोड़नेमें तकलीफ। रातमें तकलीफ बढ़ जाती है।
कूप्रम मेट 6,30,200—बीमारी का हमला एकाएक हो जाता है और एकाएक ही बन्द हो जाता है । आक्रमणके समय चेहरा नीला हो जाता है, गलनली में संकोचन होता है, श्वासमें बहुत तकलीफ रहती है। दस्त, कै प्रभृति लक्षण दिखाई देते हैं। हाथ-पैरों में खींचन होती है।
मस्कस 30–रोगीको हिस्टीरियाकी बीमारी रहती है, सर्दी से छाती भरी रहती है, सब जगह खूब महीन घड़घड़ाहट की आवाज पायी जाती है। रोगी डरता है कि साँस रुक जायगी, सीने में ऐंठन होती है।
ग्रिण्डेलिया रोबस्टा 30—जो रोगी कई वर्षों से इस रोग से ग्रसित हैं और इन्फ्लुएञ्जा होनेके बाद से ही दमा हुआ है, जरा सी सर्दी लगते ही श्वास-प्रश्वासकी तकलीफ धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और अन्तमें दमा का खिंचाव आ पहुँचता है, उनकी बीमारी में यह ज्यादा फायदा करता है। सीनेमें जोर की घड़घड़ आवाज (large coarse bubbling rales, sibilant rales), बहुत ज्यादा मात्रा में लसदार गोंद की तरह बलगम निकलता है। हमेशा धीमाधीमा जी मिचलाया करता है।
दवाओं की मात्रा –
Q – इसे 10-15 बूंद तक थोड़े से पानी के साथ रोग की स्थिति के अनुसार (अगर रोगी ज्यादा परेशान हो तो हर 15-15 मिनट से आधे घंटे के अंतराल तक) नहीं तो दिन में 3 बार लेंना चाहिए
6, 30 – इसे अगर रोगी की हालत ज्यादा खराब हो तो हर आधे -1 घंटे पर, अन्यथा दिन में 3 बार 2-2 बूंद
200 – दिन में 3 बार 2-2 बूंद
1M सप्ताह में 1 बार 2-3 बूंद
आहार और परहेज
मांस, मछली, दूध, केक, पेस्ट्री, मैदा से बनी चीजे जैसी बिस्कुट आदि, सफ़ेद डबल रोटी न दें। मोटा आटा इस्तेमाल करें, शहद, ताज़ी सब्जी, सलाद, अंडा, पनीर आदि खाने चाहिए। रात का भोजन जितना पहले हो कर लेना चाहिए, रात में कम से कम खाना खाने का कोशिस करें।