खांसी (cough)
cough medicine
khansi ka ilaj
ऐसा माना जाता है कि खांसी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है बल्कि दूसरे रोग के लक्षण हैं, यह बीमारी सर्दी, निमोनिया, टीवी, दमा या जिगर की खराबी के कारण पैदा होती है। वायु नली में जलन, अधिक कफ बनने, धूल के कारण तथा स्नायु के गड़बड़ियों से होती है। यह गले तथा फेफड़ों के विकारों से उत्पन्न होती है। सर्दी लग जाने के कारण जुकाम उत्पन्न होता है और जुकाम ठीक होने के बाद खांसी हो जाती है।
हूपिंग कफ या कुकुर खांसी
Whooping cough
हूपिंग कफ का दूसरा नाम परटूसिस (Pertusis)है यह प्रायः छोटे बच्चों को ही ज्यादा होती है। अधिकतर 2 वर्ष से नीचे के बच्चे इससे ज्यादा पीड़ित होते हैं। कभी-कभी 8 वर्ष की उम्र तक की भी इस रोग का आक्रमण होता है। हूपिंग कफ का आक्रमण जीवन में एक बार होता है। और ऐसा माना जाता है कि टीका लगवा लेने के बाद आसानी से यह ठीक हो जाती है।
यह बीमारी की तीन अवस्थाएं होती है।
-
कैटरैल (Catarrhal)
-
कन्वल्सिव (Convulsive)
-
क्रिटिकल( Critical)
कैटरल स्टेज– यह इस बीमारी की पहली अवस्था है जिसमें मामूली सर्दी खांसी होकर रोग शुरू होता है जिसमें हल्का बुखार भी रहता है खांसी में श्लेष्मा नहीं होती है और धीरे-धीरे नई सर्दी के लक्षण के साथ ताप कम होता है तथा कफ गाढ़ा और लसदार हो जाता है।
कसवल्सिव स्टेज (Convulsive stage)
यह इस बीमारी की दूसरी अवस्था है, प्रथम अवस्था से ग्रसित रहने के कुछ दिन के बाद यह खांसी बहुत बिगड़ी हुई अवस्था में बदल जाता है जिसमें बहुत ज्यादा कष्ट होता है बीच-बीच में खांसी का ऐसा दौर आता है जिससे बच्चे का दम घुटने लगता है और आंख और चेहरा लाल हो जाता है, कस कर मुट्ठी बांध लेता है, नाक मुंह से कफ निकलता है फिर भी खांसी बंद नहीं होता। और इस हाल में वह शरीर से काफी पसीना आने लगता है बच्चा खाँसते खाँसते पेशाब या पाखाना भी कर सकता है। खांसी का अटैक दिन यार रात में दो से चार बार से लेकर बहुत बार तक हो सकता है लेकिन इसका आक्रमण दिन की अपेक्षा रात में ही ज्यादा होता है। यह बहुत बिगड़ी हुई अवस्था है जिसमें नाक मुंह से भी खून निकल सकता है, दांत के बीच में जीभ घुस जाने के कारण कभी-कभी जीभ के पीछे एक या दोनों तरफ घाव हो जाता है।
क्रिटिकल स्टेज (Critical stage)
इस बीमारी की तीसरी अवस्था होती है जो की पहली अवस्था के जैसे ही हैं, इसमें खांसी का वेग कम हो जाता है और पतला कफ आराम से निकलने लगता है और खांसी भी पहले से कुछ कम आने लगते हैं।
यह बीमारी बहुत दिनों तक तकलीफ देती है।
क्रूप खांसी
Croup cough
क्रूप खांसी को बोलचाल की भाषा में काली खांसी या सूखी खांसी भी कहा जाता है। इसमें श्वास नली और उसके श्लैष्मिक झिल्ली या म्यूकस मेंब्रेन में प्रदाह (जलन) हो जाता है। यह प्रायः 1 वर्ष से लेकर 4 5 वर्ष तक के बच्चों को हुआ करती है। अधिक उम्र वालों को भी किसी किसी को होती है लेकिन इतनी ज्यादा खतरनाक नहीं होती है।
क्रूप खांसी (Croup cough) दो तरह का होता है-
कैटरल (Catarrhal)
मेम्ब्रेनस या ट्रू क्रूप (Membranous or true Croup)
or
Membranous Laryngitis
कैटरल – जब गले के नली के भीतर एक लसदार गोंद के जैसा श्लेष्मा जम जाता है जिससे खांसी होती है जिसको कैटरल क्रूप खांसी बोला जाता है।
लेकिन जब गले के भीतर एक झिल्ली के जैसा सफेद परत जमकर फेफड़े तक पहुंच जाती है और जिसके जिसके कारण सांस लेने में दिक्कत और काफी ज्यादा तकलीफ होती है जिसे मेंबरेनस या ट्रू क्रूप खांसी कहा जाता है।
कैटरल खाँसी के लक्षण
Catarrhal cough symptoms
इसके लक्षण ट्रू क्रूप खांसी के जैसे ही होते हैं लेकिन यह जल्दी से आराम हो जाता है इसमें खांसी के साथ लक्ष्य से बलगम निकलता है और गले से घड़ घड़ की आवाज सुनाई पड़ती है।
ट्रू क्रूप खांसी के लक्षण
True croup cough Symptoms
इसमें पहले हल्का सर्दी के बुखार के साथ खांसी के लक्षण आते हैं, साथ में गला का आवाज भी बदल जाता है। सोते-सोते अचानक बच्चा घबराकर उठ जाता है। ऐसा लगता है कि सांस रुक गई है जिसके कारण वह अचानक उठ कर बैठ जाता है। गले से एक अजीब सांय सांय तरह की आवाज सुनाई पड़ती है। और खांसी होने लगती है, इस बीमारी में खांसी होने का आवाज कभी-कभी कुत्ता भौंकने की आवाज जैसा होता है। बच्चे का बड़ी कष्ट के साथ खांसी होना, खांसते समय मुट्ठी बांध लेना, अधिक बेचैनी, सारे शरीर से पसीना आने लगना। सांस लेने के लिए नाक ऊंचा कर लेता है। गले में दर्द ज्यादा होने के कारण गले पर हाथ रखता है, बीमारी ज्यादा बिगड़ जाने के कारण गले की आवाज बंद हो जाती है। खाँसते खाँसते बीच में कभी-कभी जो परत गले के नली में जमे हुए रहते हैं उसके टुकड़े बाहर निकल जाते हैं। सुबह से लेकर दिन भर ठीक रहता है लेकिन शाम होने के साथ ही बीमारी बढ़ने लगते हैं। अगर बीमारी बहुत ज्यादा बिगड़ जाए और गले के नली में जमे हुए झिल्ली जैसे सफेद परत नहीं निकले तो बच्चे की मृत्यु तक हो जाती है।
cough remedies
होम्योपैथिक ईलाज (Homoeopathic treatment)
homeopathic medicine for cough
- जब गले में सूजन से खाँसी हो और गले में जलन और दर्द हो तथा खांसने के कारण मुंह लाल हो जाए, बेचैनी – बेलाडोना और एकोनाइट 30 हर 2 घंटे पर
- सुखा खाँसी, खांसते समय छाती में दर्द और होठ और जीभ सुखा हुआ हो, सिर दर्द , प्यास हो हो, जरा सा बोलते या हिलने डुलने पर रोग बढ़ जाये – ब्रायोनिया 30, दिन में 4 बार
- सुखी या घड़घड़ाहत वाली खाँसी जिसमे बलगम भरी हुई हो, ठंडी चीजें खाने से बढ़े और गर्म चीज से आराम हो – हिपर सल्फर 30, दिन में 3 – 4 बार
- जब खाँसी की आवाज सिस्टी बजने के जैसा हो, सुखा खाँसी – स्पोंजिया 30, दिन में 3 बार
- सुखी खाँसी, रात को बढ़ना, सोने पर और बढ़ जाना, बैठने पर कम होना – हायोसायमस 30 या 200, दिन में 3 बार
- जब नाक और मुंह से चिपचिपा गाढ़ा, तार खींचने के तरह सफ़ेद बलगम जो कठिनाई से निकले – काली बाईक्रोम 30, दिन में 3-4 बार
- खाँसी के साथ गला बैठ जाए , खांसते समय पेशाब निकल जाए, ठंडा पानी और ठंडे मौसम में आराम महसूस हो – कॉस्टिकम 30, दिन में 3 बार
- कुक्कूर खाँसी, बहुत जल्दी जल्दी खाँसता है खांसते खांसते कै हो जाना – ड्रौसेरा 30, 200 दिन में 3 बार
- अगर टॉन्सिल बढ़ जाने या टॉन्सिल के सूजन के कारण खाँसी हो – बैराईटा कार्ब 200, दिन में 3 बार
- केवल दिन में खाँसी होना, खाना खाने के बाद – स्टेफिसगिरिया 30 या 200, दिन में 3 बार
- दिन में बिलकुल नहीं होना लेकिन शाम में और रात में अचानक से खाँसी होने लगना – कोनियम 30, दिन में 3 बार
- बच्चा खाँसता है , छाती में बलगम भरा रहता है गला घड़ घड़ करता है लेकिन निकल नहीं सकता – एन्टिम टार्ट 30, दिन में 3 बार
- शाम के समय सुखी खाँसी होती है लेकिन सुबह के समय खाँसी के साथ नमकीन बलगम निकलना, बलगम में कभी कभी खून का अंश मिला होना, गला फंसना, हंसने, बोलने या किसी के पास जाने खाँसी बढ़ना, खांसते समय कलेजे में दर्द, ब्रोंकाइटिस – फॉस्फोरस 30 या 200 दिन में 3 बार
- मुंह के भीतर दर्द, गले के भीतर छोटे छोटे सफ़ेद रंग के दाने की तरह सफ़ेद फुंसी, मुंह और जीभ पर घाव, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस आदि – काली म्यूर 6x, 12x या 30 – दिन में 4 बार
- खाँसी के साथ उलटी या जी मचलने लगना, गले के अन्दर घड़ घड़, सांय सांय, लेकिन कुछ निकलता नहीं है ,जीभ बिलकुल साफ़, दमे के तरह खाँसी का दौरा,खाँसी के कारण अकड़ जाना – इपिकाक 30, दिन में 4 बार
घरेलू उपचार
Home remedies for cough
- 3 – 4 मुनक्के को लेकर उसके बीज निकाल लें फिर उसे तवे पर भून कर उसके साथ काली मिर्च का चूर्ण को उसके साथ मिलाकर खाएं।
- 4 – 5 काली मिर्च एक चम्मच अदरक का गूदा, तुलसी के चार पांच पत्ते, दो लॉन्ग। सबको एक कप पानी में उबालकर काढ़ा तैयार कर कर उसमें थोड़ी सी मिश्री डालकर सुबह शाम पियें।
- एक चम्मच अदरक और थोड़ा-सा शहद थोड, दोनों को मिलाकर मिलाकर चाटें, यह दवा खाँसी के लिए काफी प्रसिद्ध है
- काली मिर्च का चूर्ण एक चुटकी, पिसी हुई मिश्री आधा चम्मच दोनों को मिलाकर आधा चम्मच देसी घी के साथ सेवन करें।
- आधा चम्मच हल्दी को शहद में मिलाकर सेवन करें, इससे हर तरह की खांसी दूर हो जाती है।
- पीसी हुई एक चुटकी काली मिर्च गुड़ के साथ खाएं।
- पिसी हुई कालीमिर्च को देसी घी के साथ लेने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
- छोटी इलायची या लॉन्ग को चूसने से बार बार उठने वाली खाँसी में काफी आराम मिलता है।
- तुलसी के पत्ते और काली मिर्च वाली चाय पीने से खांसी तथा जुकाम दोनों दूर हो जाते हैं।
- चार काली मिर्च का चूर्ण, दो चुटकी सोंठ और दो लोंग का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करें।
- एक चुटकी काला नमक को अजवाइन के रस में मिलाकर सेवन करें तथा ऊपर से गर्म पानी पिएं।
- सोंठ काली मिर्च और पीपल तीनों को बराबर भाग में लेकर चूर्ण बना लें दोनों को शहद के साथ सेवन करें।
- काली मिर्च और मुलेठी लेकर पीस लें। फिर इस को गुड़ के साथ मिलाकर छोटी छोटी गोलियां बनाकर दो गोली सुबह और दो गोली शाम को पानी के साथ लें।
- एक कप पानी में एक चम्मेमच मेंथी के दानो को उबालें, पानी जब आधा रह जाए तो इसे छानकर पीएं।
- मुलेठी को मुंह में रखकर चूसना चाहिए, यह पुरानी खाँसी में फायदेमंद है।
- छोटी इलायची के दाने तवे पर भून कर उसका चूर्ण बनाकर देसी घी या शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।
- सरसों के तेल में दो लहसुन डालकर इसे पकाकर छाती पर मलें इससे छाती में जमा कर बाहर आ जाएगा।
- एक कप पानी में एक चम्मच मेथी के दानों को उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर पीएं।
- सितोपलादि चूर्ण आधा चम्मच अदरक के रस के साथ और शहद में मिलाकर दिन में दो से तीन बार चाहते हैं।
भोजन तथा परहेज
- खांसी के रोगी को अधिक गर्म तथा अधिक ठंडा खाना नहीं देना चाहिए, उसे सादा और सुपाच्य भोजन ही देना चाहिए।
- घी तेल तथा अधिक चिकनाई वाले पदार्थ रोगी को सेवन नहीं करना चाहिए।
- गर्मी के मौसम में धूप में ना बैठे हैं जाड़े के मौसम में आग के सामने नहीं बैठे, अधिक थकावट से बचें रात में जागने तथा मांस मछली ज्यादा खाने से भी अपच बढ़ता है।
- टमाटर, मूली, गाजर, पालक, शलगम, लौकी, गोभी आदि की सब्जियां नहीं दें, इसके स्थान पर तोरई, टिंडा, परवल, मेथी, बथुआ आदि की उबली हुई तथा बिना मिर्च मसाले की सब्जियां दें।
- कब्ज से बचना जरुरी है।
- कफ बनाने वाले, ठंडी चीजें तथा खट्टे पदार्थ से बचना चाहिए।
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